Tuesday, July 17, 2007

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर


सरकता रहा चांद चुपके से रात भर,

फिजा में खामोशी सी बिखर गई,
गजब सा सुकून चांद देता रहा रात भर।
तार छिड़ भी गए -नग्मे बिखर भी गए,
महकता रहा आंगन चुपके से रात भर।

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर.....

बिंदिया चमक भी गयी ,पायल खनक भी गयी,
बिखरता रहा गजरा चुपके से रात भर।
चूड़ी खनक भी गयी ,अरमान मचल भी गए,
लहराता रहा आँचल चुपके से रात भर।

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर......

पलके उठ भी गयी,पलके गिर भी गयी ,
बहकता रहा जाम चुपके से रात भर।
दिए जल भी गए ,दिए बुझ भी गए,
सिमटता रहा तिमिर चुपके से रात भर।

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर.....


पूनम अग्रवाल ....

8 comments:

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर अभिव्यक्ति

Udan Tashtari said...

बढ़िया रचना. लिखते रहिये. बधाई देता हूँ.

Poonam Agrawal said...
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Manish Kumar said...
This comment has been removed by the author.
Manish Kumar said...

दिए जल भी गए ,दिए बुझ भी गए,
सिमटता रहा तिमिर चुपके से रात भर।

achcha laga aapka ye expression

Admin said...

क्या बात है जनाब आप तॊ गजब ढा रहे हैं। लगे रहिए हमारी शुभकामनांए

Anonymous said...

excellent approach, while reading the poem...was visualizing the same...

Congratulations on my behalf and wish her best of luck for thought process...:)

Anonymous said...

excellent approach, while reading the poem...was visualizing the same...

Congratulations on my behalf and wish her best of luck for thought process...:)

S. C. Jain