Friday, July 18, 2008

सावन का सूरज

मेघों में फंसे सूरज,

तुम हो कहाँ?

सोये से अलसाए से,

रश्मी को समेटे हुए,

तुम हो कहाँ ?

मेरे उजालों से पूछों -

मेरी तपिश से पूंछो-

सूरज हूँ पर सूरज सा

दीखता नहीं तो क्या !

पिंघली सी तपन मेरी

दिखती है तो क्या !

मैं हूँ वही,

मैं हूँ वहीं ,

मैं था जहाँ ___

पूनम अग्रवाल ......

प्रेम

गगन मांगा

सूरज तो मिलना ही था।

सागर माँगा

मोती तो गिनना ही था।

बगीचा माँगा

फूल तो खिलना ही था।

जग माँगा

'प्रेम' तो मिलना ही था॥

poonam agrawal

आवाज

तंग हो गली
या कि सड़क धुली हुई ,
राह को एक चुनना होगा।

आँखें हो बंद
या कि खुली हुई
स्वप्न तो एक बुनना होगा।

बातें कुछ ख़ास
या कि यादें भूली हुई,
वायदा कोई गुनना होगा।

सन्नाटा हो दूर
या कि हलचल घुली हुई,
आवाज को मन की सुनना होगा॥

पूनम अग्रवाल

Sunday, July 6, 2008

आशा

बात ये बहुत पुरानी है,
एक बहन की ये कहानी है।
मांजी सब उनको कहते थे,
प्रेमाश्रु सदा उनके बहते थे।
कमर थी उनकी झुकी हुई,
हिम्मत नही थी रुकी हुई।
पूरा दिन काम वो करती थी,
कभी आह नही भरती थी ।
सिर्फ़ काम और काम ही था,
थकने का तो नाम न था।
रसोई जब वो बनाती थी ,
भीनी सी सुगंध आती थी ।
चूल्हे पर खाना बनता था,
धुए की महक से रमता था।
कुछ अंगारे निकालती हर रोज,
पकाती थी उस पर चाय कुछ सोच।
शायद भाई कहीं से आ जाए,
तुंरत पेश करुँगी चाय।
थकान भाई की उतर जायेगी,
गले में चाय ज्यूँ फिसल जायेगी।
नही था वो प्याला चाय का ,
वो तो थी एक आशा।
बुझी सी आँखों में झूलती ,
कभी आशा कभी निराशा।
बहन के प्यार की न कभी,
कोई बता सका परिभाषा.....

पूनम अग्रवाल .....