Wednesday, May 21, 2008

भगवान् ( ईश्वर )


रोंदी मिट्टी का ढेर नहीं मैं ,
हवा के झोंके से उड जाऊँ ।
से भूमी हूँ मैं सम्पूर्ण -

बादल का एक टुकडा नहीं मैं,
बरस जाऊँ किसी आंगन में।
से गगन हूँ मैं अनंत-

मंद पवन का झोंका नहीं मैं,
उड़ा लाऊ कुछ तिनके ,धूल ।
से वायु हूँ मैं प्राण -रक्षक -

टिमटिमाते दिए की लों नही मैं,
बुझ जाऊँ दिए की बाती संग
से अग्न हूँ मैं दाहक -

झर झर
बहती धार नहीं मैं,
समा जाऊ किसी सरिता में.
से नीर हूँ मैं जीवन - दायक-

सम्पूर्ण स्राश्ती के हम हैं विधाता ,
मिलकर बनते हैं 'भगवान्'-
रूष्ट एक भी हो जाए फ़िर ,
मानव का नहीं है कल्याण ।

पंचतत्व हैं हम कहलाते '
हमसे हुवा सबका निर्माण।
सर्वत्र हमारी पूजा होती।
सम्पूर्ण जगत में हम विद्यमान।

पूनम अग्रवाल-