जीवन क्या है ? एक मेला है।
दुःख -सुख का एक रेला है ।
दुःख सागर , सुख सपना है।
दुःख - सागर के तुम बनना तुम सफल गोताखोर .
डूब गए तो न नयन भिगोना,
भीग गये तो न करना मलाल।
मोका मिल है ,मोती चुराना सागर के।
फिर बढाना हाथ अपना .
सर्वप्रथम जो थामेगा हाथ तुम्हारा ,
समझना वही है हकदार , मोती की गागर के...
जीवन क्या है? एक मेला है।
दुःख-सुख का एक रेला है।
सुख सपना जब होगा साकार ,
किसी चीज का ना होगा आकार ।
सपने को न तुम सच समझ लेना
भीड़ से दबे -सबको न अपना समझ लेना।
सपना बड़ा सुहाता है ,
झूम -झूमकर लुभाता है।
सपने तो पर सपने है ,
ये कभी ना अपने है।
सपने में सब लगते है अपने ,
धूप भी कोमल लगती है ।
पतझड़ भी सावन लगता है,
नींद गहरी और गहरी हुई जाती है।
नींद से जागोगे ,तो जानोगे तुम ,
ये तो थे सिर्फ सपने ,मीठे सपने........
- पूनम अग्रवाल
Monday, July 9, 2007
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1 comment:
मेले में सुख दुख का रेला
आदमी फिर भी अकेला
लगाना गोता जो सीखा
फिर सुख क्या, दुख क्या
सपने जो हो जाएं अपने
जीवन रसमय हो जाएगा
लेकिन कमबख्त
नींद है कि हर बार टूट जाती है...
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