आंगन में उजालो को बिखर जाने दो,
पिंघल जायेगी उमर मॉम की तरह।
लम्हों को फिसल कर संभल जाने दो,
उतर जायेगी गले में सोम की तरह।
रिश्तों में कटुता को सिमट जाने दो,
बिखर जायेगी धरा पर व्योम की तरह।
खुली हवा में पंखों को पसर जाने दो,
लिपट जायेगी अनल में होम की तरह।
आँचल में सितारों को समां जाने दो,
ॐ हो जायेगी इक दिन ओऊम की तरह।
- पूनम अग्रवाल
Thursday, July 5, 2007
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3 comments:
very nicely done
these are beauitful beautiful poetry u have written...
karan from (ah poetyry in orkut)
Thanx a lott..
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