दूर कहीँ चिड़ियों का झुंड,
सौ - सौ हजारों चिड़ियों का झुंड,
मैं जहाँ हूँ वहाँ से वे
उडती हुई नहीं तैरती सी दिखती हैं
सांझ के धुंधले आसमान के नीचे ,
कितना सुकून देता है इनको इनका तैरना
इस तरफ इन्सान है
साथ साथ नहीं चल सकते दो इन्सान ,
दो कदम भी सुख से....
पूनम अग्रवाल
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3 comments:
hey aunty m shubhams class mate...
awesome thoughts aunty...
really really loved it
Thanks..
They r superb. Ur mother has passed from many experiences and these poems r like the summary of them. Pl tell her to continue.
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