मन तो है कवि मेरा,
शब्द कहीं गुम हो गए थे।
पाया साथ तुम्हारा फ़िर ,
क्यूँ हम गुमसुम से हो गए थे।
शब्दों के इस ताने बने में,
था क्यूँ उलझा मन।
बन श्याम तुम खड़े थे पथपर,
फ़िर क्यूँ शब्द हुआ थे गुम ।
सांसों के इस आने -जाने में
था क्यूँ सिमटा तन।
बन सावन तुम बरस रहे थे,
फ़िर क्यूँ शुब्ध हुआ था मन॥
मन तो है कवि मेरा,
शब्द कहीं गुम हो गए थे।
पूनम अग्रवाल .........
शब्द कहीं गुम हो गए थे।
पाया साथ तुम्हारा फ़िर ,
क्यूँ हम गुमसुम से हो गए थे।
शब्दों के इस ताने बने में,
था क्यूँ उलझा मन।
बन श्याम तुम खड़े थे पथपर,
फ़िर क्यूँ शब्द हुआ थे गुम ।
सांसों के इस आने -जाने में
था क्यूँ सिमटा तन।
बन सावन तुम बरस रहे थे,
फ़िर क्यूँ शुब्ध हुआ था मन॥
मन तो है कवि मेरा,
शब्द कहीं गुम हो गए थे।
पूनम अग्रवाल .........
14 comments:
बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
धन्यवाद
kavi ke man me shabdo ka basera hota hai ,agar kabhi shabad hi gum jaye to phir andhera hota hai aur wo andhera ek kalamkar bardasth nahi kar sakta.aapki abhivyakti dil ko sparsh kar gai__sanjay sanam
मन की बातें मन ने जानीं
यूं उलझा था मन
शब्द तो जा कर फ़िर आयेंगे
कवि मत होना गुम
nice poems...
सचमुच आप मन से ही कवि हैं.शब्द भावों की उमड़ घुमड़ से हृदयाकाश आच्छादित रहता होगा.
लिखती रहें.शुभकामनाएं.
कुछ टाइपिंग संबन्धी अशुद्धियाँ रह गयीं हैं रचना में.कृपया उन्हें संपादित कर पोस्ट पुनः प्रकाशित कर दें..
मन तो है कवि मेरा,
शब्द कहीं गुम हो गए थे।
यह कविता नहीं है; सुंदर शब्दों की वाटिका है!....धन्यवाद!
बस एक ही शब्द कहना चाहूँगा, "प्रेरणादायक!"
bahut achchha,,.. dil tak pahunchti hain line
लेखन के साथ -साथ हाथों मे भी भगवान् समाया है....
आपकी पेंटिंग बहुत ही अच्छी हैं क्या वो आपकी हैं सारी....?
.
ये कविता आप पर सही बैठती है बहुत पहले लिखी थी
कला-कलाकार,कवि-कविता और एकमात्र कल्पना, कर-कर्ता,कलम-कागज और एकमात्र कामना, सजाना-संवारना,संस्मरण-शब्द्सुत्र और एकमात्र साधना,
शिल्प-शिल्पी,शब्द-शैली और एकमात्र शोभा, मानक-मीनाकारी,मर्म-मन और एक मात्र ममता, वस्तु-विचित्र,वाक्य-व्यंजना और एकमात्र वंदना
अक्षय-मन
har kavi isse jud sakega :)
ban saavan tum baras rahe the, fir kyoon ...........bahut hee badhiya abhivyakti !
सांसों के इस आने -जाने में
था क्यूँ सिमटा तन।
बन सावन तुम बरस रहे थे,
फ़िर क्यूँ शुब्ध हुआ था मन॥
speechless....bahot hi sulja hua aur bahvnatmak likha he aapne...regards
बहुत सुन्दर कविता---
मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे ,
गीत का स्वर मधुर माधुरी होगया।
अक्ष्र -अक्षर सरस आम्र मन्जरि हुआ ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।
कुछ टाइपिंग संबन्धी अशुद्धियाँ रह गयीं हैं |यह कविता नहीं है; सुंदर शब्दों की वाटिका है!....धन्यवाद!
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