Wednesday, April 30, 2008

प्रतिबिम्ब है वो मेरा

..बित्तू हमेशा कहती रही कभी मेरे लिए भी कुछ लिखिए .... तो आज मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी प्रतिमुर्ती के लिए कुछ लिख रही हूँ.....

कहते है लोग-
बिटिया परछाई है तुम्हारी,
मैं कहती हूँ मगर-
परछाई तो श्याम होती है।
न कोई रंग-
बस सिर्फ़ बेरंग ।
वो तो है मेरा प्रतिबिम्ब -
सदा सामने रहता है।
वो तो है मेरी प्रतीमुरती -
छवी मेरी ही दिखती है । ।

6 comments:

neelima garg said...

wow..so sweet..

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर.

कुश said...

bahut sundar bhav... badhai,,

Anonymous said...

Jusssstttttttttttt Amazing!!
Nothin else to say !!! -- B2

Anonymous said...

aap ka email nahin mila so yaahn sandesh dae rahee hun
agar aap naari blog sae judna chaahye to sampark karey

Misha Agrawal said...

Abb ek poem lal par likho...