गुजरात में मकर संक्रान्ती के दिन पतंग - महोत्सव की अति महत्ता है। दिन के उजाले में आकाश रंगीन पतंगों से भर जाता है। अँधेरा होते ही पतंग की डोर में तुक्कल बांध कर उडाया जाता है। जो उड़ते हुए सितारों जैसे लगते है। उड़ती हुयी तुक्कल मन मोह लेने वाला द्रश्य उत्पन्न करती है। इस द्रश्य को मैंने कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया है.........
कारवाँ है ये दीयों का,
कि तारे टिमटिमाते हुए।
चल पड़े गगन में दूर ,
बिखरा रहे है नूर।
उनका यही है कहना ,
हे पवन ! तुम मंद बहना ।
आज है होड़ हमारे मन में ,
मचलेंगी शोखियाँ गगन में।
आसमानी सितारों को दिखाना,
चाँद को है आज रिझाना।
पतंग है हमारी सारथी,
उतारें गगन की आरती।
हम है जमीनी सितारे,
कहते है हमे 'तुक्कल' ........
पूनम अग्रवाल ....
Wednesday, January 16, 2008
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6 comments:
पतंग है हमारी सारथी,
उतारें गगन की आरती।
हम है जमीनी सितारे,
कहते है हमे 'तुक्कल' ........
kamal hai....goya ki basant ka swagat...
when i use to see at a kite,i really be amazed...........its just a tiny piece of paper,two small sticks and a few inches long thread...............and look when they combine,they fly like they want to challange these birds....come fight with us if u can.......and this TUKKAL.....oh stars should be ashamed,bcoz they can not move.............
these are beautiful and sweet lines.........
VERY NICE
all poems are nice..
बहुत सुंदर रचना.. बधाई..
सारी परिपक्व रचनाएं हैं,साधुवाद स्वीकारिये....
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