आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा।
बाहें किरणों की पसरा कर वह
देख मुझे मुस्काता है।
बस वही सिर्फ एक सितारा
हर रोज मुझे क्यों भाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
बादल की चादर के पीछे जब
वह छिप जाता है।
बिछड़ा हो बच्चा माँ से जैसे
इस तरह तडपाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा। ....
- पूनम अग्रवाल .....
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा।
बाहें किरणों की पसरा कर वह
देख मुझे मुस्काता है।
बस वही सिर्फ एक सितारा
हर रोज मुझे क्यों भाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
बादल की चादर के पीछे जब
वह छिप जाता है।
बिछड़ा हो बच्चा माँ से जैसे
इस तरह तडपाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा। ....
- पूनम अग्रवाल .....
4 comments:
oh.........i've been away from internet for a long time........got time to read ur poem now...........
its so good,i cant express...............just waiting for next.....
"बस वही सिर्फ एक सितारा
हर रोज मुझे क्यों भाता है।"
बहुत ही सुन्दर और सहज अभिव्यक्ति है प्रेम-भाव की ,आपकी रचना में.
kahi dil ke kisi khas hisse se likhi gayi hai.....aor mashallah kya chitr lagaya hai aapne.....
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
Really touching...please continue writing more of such poems in future...i wish you best of luck!!
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