मै कोई बदली तो नहीं ,
बरस जाऊँ किसी आँगन में ।
घटा हूँ घनेरी,
बुझाती हूँ तृष्णा तपती धरती की .......
मै कोई जलधार तो नहीं,
बिखर जाऊँ कहीं धरा पर ।
सागर हूँ अपार,
छिपाती हूँ धरोहर निज गहराई में......
मै कोई आँचल तो नहीं,
ढक लूँ झूमते हुए उपवन को।
रजनी हूँ पूनम,
निभाती हूँ नई सुबह जीवन की......
मै कोई किरण तो नहीं,
सिमट जाऊँ किसी मन में।
चांदनी हूँ धवल,
समाती हूँ अन्धकार के जीवन में......
मैं कोई श्रष्टा तो नहीं,
कर दूँ निर्माण श्रृष्टि का।
श्रष्टि हूँ सम्पूर्ण ,
देती हूँ कोख श्रष्टा को भी......
पूनम अग्रवाल........
बरस जाऊँ किसी आँगन में ।
घटा हूँ घनेरी,
बुझाती हूँ तृष्णा तपती धरती की .......
मै कोई जलधार तो नहीं,
बिखर जाऊँ कहीं धरा पर ।
सागर हूँ अपार,
छिपाती हूँ धरोहर निज गहराई में......
मै कोई आँचल तो नहीं,
ढक लूँ झूमते हुए उपवन को।
रजनी हूँ पूनम,
निभाती हूँ नई सुबह जीवन की......
मै कोई किरण तो नहीं,
सिमट जाऊँ किसी मन में।
चांदनी हूँ धवल,
समाती हूँ अन्धकार के जीवन में......
मैं कोई श्रष्टा तो नहीं,
कर दूँ निर्माण श्रृष्टि का।
श्रष्टि हूँ सम्पूर्ण ,
देती हूँ कोख श्रष्टा को भी......
पूनम अग्रवाल........