Sunday, August 17, 2008

' निर्वाण '

सर्वत्र हो तुम ,
सर्वस्व भी तुम।
रचना हो तुम ,
रचनाकार भी तुम।
सर्जन हो तुम,
स्रजन्हारभी तुम।
मारक हो तुम ,
तारक भी तुम।
स्रष्टी हो तुम,
श्रष्टा भी तुम।
दृष्टी हो तुम,
दृष्टा भी तुम।
मुक्ती हो तुम ,
'निर्वाण' भी तुम।

3 comments:

BiharX said...

bahut acha kavita hai

Unknown said...

Beautifuly woven words..
An amazing description of GOD!! :)

अविनाश said...

very nice poem