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मैं मलिन नदी ,
शकुंतला की अठखेलियों को
करीब से देखा है मैंने ,
'भारत' ने जिससे पाया
अपना नाम उस भरत को
स्पर्श किया है मैंने ।
तब वेग था मेरे मन में ,
धैर्य था मेरे तन में ।
समय बीता -
आज में त्रस्त हूँ ,
तन मन से ध्वस्त हूँ।
सूख गया है तन मेरा,
टूट गया है मन मेरा ।
मेरे उस और बसे
लोग आज भी
इस और आते है ।
रोंद कर सभी मुझे
निकल जाते है ।
उनके लिए मैं कुछ भी नहीं ,
सिर्फ एक "शोर्ट कट " हूँ ।
पूनम अग्रवाल ...