मुंबई में घटित आतंकवाद के इस नए रूप ने सबको हिला कर रख दिया है। यम् के रूप में आए आतंकवादी .... मासूमों की भयानक मोतें ...आख़िर क्या साबित करना चाहते हैवे... इंसान की इंसान से इतनी नफरत .....नफरतों का सैलाब हो जैसे.....
सबके मन में एक रोष है ...एक रंज है...पूरी की पूरी व्यवस्था चरमरा चुकी है ....कब जीवन फिर से पटरी पर आएगा ... कुछ पता नही......मेरा salaam है .... उनको jinhone जीवन बलिदान दिया.....
रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म,
नजर अब सारे आने लगे है।
तुफा है कि ये है बवंडर ,
शकल यम् की ये पाने लगा है ।
जंगल की आग कुछ यूँ धधकी ,
तन क्या मन भी झुलसने लगा है।
ठहर जाओ ए तेज हवाओं !
लहू उभर कर अब आने लगा है॥
पूनम अग्रवाल ....
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17 comments:
sahi kaha ab khun gardish kar raha hamare jismon mei desh ki parsthiyon ko dekh .....
aapko phele bhi maa ke roop mei pada ab bhi maa ke roop mei hi pad raha huin .....
lekin ab poore desh ki maa.......
एक दर्पण,दो पहलू और ना जाने कितने नजरिये /एक सिपाही और एक अमर शहीद का दर्पण और एक आवाज
अक्षय,अमर,अमिट है मेरा अस्तित्व वो शहीद मैं हूं
मेरा जीवित कोई अस्तित्व नही पर तेरा जीवन मैं हूं
पर तेरा जीवन मैं हूं
अक्षय-मन
ठहर जाओ ए तेज हवाओं !
लहू उभर कर अब आने लगा है॥
पुनम जी आप ने बहुत सही लिखा.
धन्यवाद
रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म,
नजर अब सारे आने लगे है।
--बहुत सही भाव!! यही हालात हैं.
sirf nari ke sine mei hi dil aur wo shakti kyun hoti hai......?
wo hi samajhti hai jisne khoya hai apna
beta,apni beti,apna bhai,apna pati phir bhi
wo hi kyun aage badti hai..
uske paas dil bhi hai aur shakti bhi apne aap mei har jagha purn har tarf se viksit.....
->adhura mein huin bas "main"...
shkti hai to dil nahi kisi ko bhi nahi dekhta kisi ko bhi nahi bakshta....
aur dil hai to shakti nahi kisi par julm hote dekh to sakta hai
aur char aansu baha sakta hai par us julm rok nahi sakta na koshish karta rokne ki.....
ye "main" huin "main" ek "aadmi"
तुफा है कि ये है बवंडर ,
शकल यम् की ये पाने लगा है ।
ठहर जाओ ए तेज हवाओं !
लहू उभर कर अब आने लगा है॥
बेहतरीन...
mumbai aatankwad ki ghatana wakai dahala dene wali hai. aapane ispar jo chinta vyakt ki hai vah mojun hai.
ruh par jo jakhm ki bat aapane ki bat bahut jabardast hai. badhai.
पूनमजी अग्रवाल
"रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म,
नजर अब सारे आने लगे है।
ठहर जाओ ए तेज हवाओं !
लहू उभर कर अब आने लगा है॥"
पढकर बहुत ही accha laga. ..very good wishes to you .hope to see you writing more and more of this kind.please visit my blog HEY PRABHU YEH TERAPATH & "MY BLOG" (http://ctup.blog.co.in) I also want to comment on my blog.
Thank you and god bless you.
जंगल की आग कुछ यूँ धधकी ,
तन क्या मन भी झुलसने लगा है।
ठहर जाओ ए तेज हवाओं !
लहू उभर कर अब आने लगा है॥
सामयिक रचना भावपुर्ण!
आदरणीया पूनम जी वर्त्तमान परिवेश में सुंदर विचार लिखे है -
रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म, नजर अब सारे आने लगे है।
तुफा है कि ये है बवंडर ,शकल यम् की ये पाने लगे है ।
सुन उनके शोर्य की गाथा , दुश्मन दंग रह जावेगा
खून की छोडो उनके पसीने से यहाँ वीर ही वीर उपज जावेगा
साधुवाद !
सही स्थिति का वर्णन चयनित शब्दों में / आकलन साधारण शब्दों में /जंगल की आग कहा छायाबदी शब्दों में
जंगल की आग कुछ यूँ धधकी ,
तन क्या मन भी झुलसने लगा है।
... मार्मिक अभिव्यक्ति है, प्रसंशनीय है।
''रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म, नजर अब सारे आने लगे है''
bhot khub kha punam ji.
''रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म, नजर अब सारे आने लगे है''
bhot khub kha punam ji.
उम्दा रचना
Yatharth parak rachna.
बेहतर कविता के लिये बधाई स्वीकारें
तुफा है कि ये है बवंडर ,
शकल यम् की ये पाने लगा है ।
जंगल की आग कुछ यूँ धधकी ,
तन क्या मन भी झुलसने लगा है।
" scah kha behd dardnaak, or dukhd.....shermnaka bhi"
Regards
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