जिन फूलों की खुशबू पर
किताबों का हक़ था ,
वही फूल भवरों को
अब भरमाने लगे है ।
छिपे थे जो चेहरे
मुखोटों के पीछे ,
वही चेहरे नया रूप
अब दिखाने लगे है ।
पलकों पर थम चुकी थी
जिन अश्कों की माला ,
नर्म कलियों पर ओस बन
अब बहकाने लगे है।
जिन साजों पर जम चुकी थी
परत धूल की ,
वही साज नया गीत
अब गुनगुनाने लगे है ।
जिनके लिए कभी वो
सजाते थे ख़ुद को,
वही आईने देख उन्हें
अब शर्माने लगे है.....
पूनम अग्रवाल.......
17 comments:
बहुत सुन्दर रचना है।
पलकों पर थम चुकी थी जिन अश्कों की माला
नर्म कलियों पर ओस बन अब बहकाने लगे है।
जिनके लिए कभी वो सजाते थे ख़ुद को
वही आईने देख उन्हें अब शर्माने लगे है....
क्या बात है जी बहुत ख़ूब लिखा है आपने। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना
every line, mind blowing, great!
sidhi saral bhasha mein bahut khoob likha hai keep it up...........
Wah wah
kya baat hai...
badhai
अत्यधिक सुंदर रचना /
amazing kavita .. aapka blog bahut hi achha hai
-tarun
(http://tarun-world.blogspot.com/)
पूजा जी अच्छा लिखती हैं आप...अच्छा लगा आपका ब्लाग देखकर...
AAj pahli baar aapke blog par pahuncha , pad kar aapki kavitaon ko bahut acha laga . bolti hui poems hai ..
i will now visit here regularly.
I request you to visit my blog and give your valuable comments:
Regards
Vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
bahut sunder bhaav...
bahut hi sundar adbhut ek utkrisht racha padhkar bahut hi accha laga......
aaine sharmane lage........
sundar bhav hain.......
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑ इस पर क्लिक कीजिए
आभार...अक्षय-मन
saraltam shabdon me gahantar abhivyahti ! man se niklee man ko chootee !
aur yah alag panna ? vatsalya ka darpan .
अच्छा लिख रही हैं.
नियमित लेखन के लिए मेरी शुभकामनाऐं.
पहली बार यहाँ आई हूँ और अब बार-बार आउंगी
:-)
फूल भवरों को अब भरमाने लगे
अश्क ओस बन अब बहकाने लगे
साज़ नया गीत अब गुनगुनाने लगे
आईने उन्हें देख अब शर्माने लगे
बहुत सुंदर भाव
really very nice..
bhutt hi khoob....wahhhhh
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