Monday, September 22, 2008

शर्माने लगे है .........



जिन फूलों की खुशबू पर

किताबों का हक़ था ,

वही फूल भवरों को

अब भरमाने लगे है ।

छिपे थे जो चेहरे

मुखोटों के पीछे ,

वही चेहरे नया रूप

अब दिखाने लगे है ।

पलकों पर थम चुकी थी

जिन अश्कों की माला ,

नर्म कलियों पर ओस बन

अब बहकाने लगे है।

जिन साजों पर जम चुकी थी

परत धूल की ,

वही साज नया गीत

अब गुनगुनाने लगे है ।

जिनके लिए कभी वो

सजाते थे ख़ुद को,

वही आईने देख उन्हें

अब शर्माने लगे है.....

पूनम अग्रवाल.......