जिन फूलों की खुशबू पर
किताबों का हक़ था ,
वही फूल भवरों को
अब भरमाने लगे है ।
छिपे थे जो चेहरे
मुखोटों के पीछे ,
वही चेहरे नया रूप
अब दिखाने लगे है ।
पलकों पर थम चुकी थी
जिन अश्कों की माला ,
नर्म कलियों पर ओस बन
अब बहकाने लगे है।
जिन साजों पर जम चुकी थी
परत धूल की ,
वही साज नया गीत
अब गुनगुनाने लगे है ।
जिनके लिए कभी वो
सजाते थे ख़ुद को,
वही आईने देख उन्हें
अब शर्माने लगे है.....
पूनम अग्रवाल.......