नभ में जल है,
थल में जल है,
जल में जल है।
कैसी ये विडंबना ?
तरसे मानव जल को है।
भीगा तन है, भीगा मन है,
सूखे होंठ - गला रुंधा सा।
हर नयन मगर सजल है.....
पूनम अग्रवाल....
Sunday, August 31, 2008
Monday, August 25, 2008
स्वप्न
स्वप्न यहाँ पलकों पर ,
सजा करते है।
साकार हो जाता है ,
जब स्वप्न कोई।
दिन बदल जाते है,
रातें बदल जाती है।
बिखर जाता है,
जब स्वप्न कोई ।
तब भी----
दिन बदल जाते है,
रातें बदल जाती है।
अश्क उभर आते है,
दोनों ही सूरतों में।
फर्क बस है इतना-
कभी ये सुख के होते है ।
कभी ये दुःख के होते है।
स्वप्न यहाँ पलकों पर,
सजा करते है .....
पूनम अग्रवाल ....
सजा करते है।
साकार हो जाता है ,
जब स्वप्न कोई।
दिन बदल जाते है,
रातें बदल जाती है।
बिखर जाता है,
जब स्वप्न कोई ।
तब भी----
दिन बदल जाते है,
रातें बदल जाती है।
अश्क उभर आते है,
दोनों ही सूरतों में।
फर्क बस है इतना-
कभी ये सुख के होते है ।
कभी ये दुःख के होते है।
स्वप्न यहाँ पलकों पर,
सजा करते है .....
पूनम अग्रवाल ....
Sunday, August 17, 2008
' निर्वाण '
सर्वत्र हो तुम ,
सर्वस्व भी तुम।
रचना हो तुम ,
रचनाकार भी तुम।
सर्जन हो तुम,
स्रजन्हारभी तुम।
मारक हो तुम ,
तारक भी तुम।
स्रष्टी हो तुम,
श्रष्टा भी तुम।
दृष्टी हो तुम,
दृष्टा भी तुम।
मुक्ती हो तुम ,
'निर्वाण' भी तुम।
सर्वस्व भी तुम।
रचना हो तुम ,
रचनाकार भी तुम।
सर्जन हो तुम,
स्रजन्हारभी तुम।
मारक हो तुम ,
तारक भी तुम।
स्रष्टी हो तुम,
श्रष्टा भी तुम।
दृष्टी हो तुम,
दृष्टा भी तुम।
मुक्ती हो तुम ,
'निर्वाण' भी तुम।
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