Friday, July 18, 2008

सावन का सूरज

मेघों में फंसे सूरज,

तुम हो कहाँ?

सोये से अलसाए से,

रश्मी को समेटे हुए,

तुम हो कहाँ ?

मेरे उजालों से पूछों -

मेरी तपिश से पूंछो-

सूरज हूँ पर सूरज सा

दीखता नहीं तो क्या !

पिंघली सी तपन मेरी

दिखती है तो क्या !

मैं हूँ वही,

मैं हूँ वहीं ,

मैं था जहाँ ___

पूनम अग्रवाल ......

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

सूरज हूँ पर सूरज सा

दीखता नहीं तो क्या !

पिंघली सी तपन मेरी

दिखती है तो क्या !

मैं हूँ वही,

मैं हूँ वहीं ,

मैं था जहाँ ___

behad khoobsurat.....lajavab...intzaar rahega agli rachnaayo ka...

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... said...

वाह, अच्छी कविता है..!!