रोंदी मिट्टी का ढेर नहीं मैं ,
हवा के झोंके से उड जाऊँ ।
भ से भूमी हूँ मैं सम्पूर्ण -
बादल का एक टुकडा नहीं मैं,
बरस जाऊँ किसी आंगन में।
ग से गगन हूँ मैं अनंत-
मंद पवन का झोंका नहीं मैं,
उड़ा लाऊ कुछ तिनके ,धूल ।
व से वायु हूँ मैं प्राण -रक्षक -
टिमटिमाते दिए की लों नही मैं,
बुझ जाऊँ दिए की बाती संग
अ से अग्न हूँ मैं दाहक -
झर झर बहती धार नहीं मैं,
समा जाऊ किसी सरिता में.
न से नीर हूँ मैं जीवन - दायक-
सम्पूर्ण स्राश्ती के हम हैं विधाता ,
मिलकर बनते हैं 'भगवान्'-
रूष्ट एक भी हो जाए फ़िर ,
मानव का नहीं है कल्याण ।
पंचतत्व हैं हम कहलाते '
हमसे हुवा सबका निर्माण।
सर्वत्र हमारी पूजा होती।
सम्पूर्ण जगत में हम विद्यमान।
पूनम अग्रवाल-
हवा के झोंके से उड जाऊँ ।
भ से भूमी हूँ मैं सम्पूर्ण -
बादल का एक टुकडा नहीं मैं,
बरस जाऊँ किसी आंगन में।
ग से गगन हूँ मैं अनंत-
मंद पवन का झोंका नहीं मैं,
उड़ा लाऊ कुछ तिनके ,धूल ।
व से वायु हूँ मैं प्राण -रक्षक -
टिमटिमाते दिए की लों नही मैं,
बुझ जाऊँ दिए की बाती संग
अ से अग्न हूँ मैं दाहक -
झर झर बहती धार नहीं मैं,
समा जाऊ किसी सरिता में.
न से नीर हूँ मैं जीवन - दायक-
सम्पूर्ण स्राश्ती के हम हैं विधाता ,
मिलकर बनते हैं 'भगवान्'-
रूष्ट एक भी हो जाए फ़िर ,
मानव का नहीं है कल्याण ।
पंचतत्व हैं हम कहलाते '
हमसे हुवा सबका निर्माण।
सर्वत्र हमारी पूजा होती।
सम्पूर्ण जगत में हम विद्यमान।
पूनम अग्रवाल-