Wednesday, April 30, 2008

प्रतिबिम्ब है वो मेरा

..बित्तू हमेशा कहती रही कभी मेरे लिए भी कुछ लिखिए .... तो आज मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी प्रतिमुर्ती के लिए कुछ लिख रही हूँ.....

कहते है लोग-
बिटिया परछाई है तुम्हारी,
मैं कहती हूँ मगर-
परछाई तो श्याम होती है।
न कोई रंग-
बस सिर्फ़ बेरंग ।
वो तो है मेरा प्रतिबिम्ब -
सदा सामने रहता है।
वो तो है मेरी प्रतीमुरती -
छवी मेरी ही दिखती है । ।

Tuesday, April 29, 2008

अंश


जब एक माँ अपनी नाजों से पली बेटी को उसके सपनो के राजकुमार के साथ विदा करती है। उस समय जो एहसास ,जो ख्याल मेरे मन को भिगो गए- शायद हरेक की ममता इसी तरेह उमड़ पड़ती होगी ........

ये रचना सिर्फ मेरी बिटिया के लिए ......

समाई थी सदा से
वो मुझमें ...
एक अंश के तरह॥
एहसास है एक
अलगाव का
पिंघल रहा है ...
क्यों आज मेरी
आँखों में ...
ख्याल आते गए
बहुत से...
आकर चले गए
खुश हूँ मैं ...
इसलिए की
अंश मेरा
खुश है......
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ख्यालो की तपिश से
पिंघल रही है
बरफ आँख की...
रिश्ता कोई हाथों से
फिसल रहा
हो जैसे...