क्यूँ छिटकी है चांदनी आसमां पर.....
क्यूँ बिखरे है रंग जमीं पर.....
क्यूँ हवाओं में ताजगी सी है ....
लगता है कहीं से बहार आ गयी है। ।
क्यूँ ताजगी सी है हवाओं पर ....
क्यूँ बिछी है नजरें राहों पर....
क्यूँ इन्तजार की इन्तहां हो गयी है....
लगता है बेमोसम बरसात आ गयी है॥
क्यूँ गुनगुनाहट सी है सांसों में....
क्यूँ तान छिडी है साजों में......
क्यूँ जुबान खामोश सी है.....
लगता है मिलन की बात आ गयी है॥
क्यूँ महकते ही पत्ते शाखों पर .....
क्यूँ लहराती है जुल्फें शानो पर.....
क्यूँ छलकता है दिल हरदम .....
लगता है तेरे आने की दस्तक आ गयी है॥
पूनम अग्रवाल .....
क्यूँ बिखरे है रंग जमीं पर.....
क्यूँ हवाओं में ताजगी सी है ....
लगता है कहीं से बहार आ गयी है। ।
क्यूँ ताजगी सी है हवाओं पर ....
क्यूँ बिछी है नजरें राहों पर....
क्यूँ इन्तजार की इन्तहां हो गयी है....
लगता है बेमोसम बरसात आ गयी है॥
क्यूँ गुनगुनाहट सी है सांसों में....
क्यूँ तान छिडी है साजों में......
क्यूँ जुबान खामोश सी है.....
लगता है मिलन की बात आ गयी है॥
क्यूँ महकते ही पत्ते शाखों पर .....
क्यूँ लहराती है जुल्फें शानो पर.....
क्यूँ छलकता है दिल हरदम .....
लगता है तेरे आने की दस्तक आ गयी है॥
पूनम अग्रवाल .....