Friday, September 7, 2007

हाँ ! कविता हूँ मैं ....


हाँ ! कविता हूँ मैं -
कवि की मासूम सी कल्पना हूँ मैं ,
कलम से कागज़ पर उकेरी अल्पना हूँ मैं ।

कहीँ किसी अंतर्मन की गहराई हूँ मैं ,
कहीँ उसी अंतर्द्वंद की परछाई हूँ मैं ।

हाँ !कविता हूँ मैं -

कहीँ आँधियों से टकराता दिया हूँ मैं ,
कहीँ बोझिल सा धड़कता जिया हूँ मैं ।

हाँ !कविता हूँ मैं-

कहीँ श्रृंगार के रस मे लिपटी हूँ मैं,
कहीँ शर्माई सहमी सी सिमटी हूँ मैं ।

हाँ! कविता हूँ मैं-

कहीँ विरह रस मे भीगा गीत हूँ मैं,
कहीँ बंद कमल मे भ्रमर का प्रीत हूँ मैं।

हाँ! कविता हूँ मैं-

कहीँ चांद - तारों कीं उड़ान हूँ मैं ,
कहीँ मरुभूमि मे बिखरती मुस्कान हूँ मैं।

हाँ ! कविता हूँ मैं-
कवि कि मासूम सी कल्पना हूँ मैं,
कलम से कागज़ पर उकेरी अल्पना हूँ मैं....

पूनम अग्रवाल