Monday, December 8, 2008

दो प्रेमी मिलते है ऐसे.......


नजरों से नजरे मिली है ऐसे,
नवदीप जले हो चमन में जैसे।

मन में हलचल मची है ऐसे,
सागरमें मंथन हो जैसे।

अधरों से अधर मिले है ऐसे,
गीतों से सुर मिले हों जैसे।


माथे पर बुँदे छलके है ऐसे ,

जलनिधि से मोत्ती हों जैसे।


आलिंगन में बंधे है ऐसे,
कमल में भ्रमर बंद हो जैसे।

मदहोशी है नयन में ऐसे,
बात खास कुछ पवन मैं जैसे।

बाँहों के घेरे है ऐसे,
पंख पसारे हों नभ ने जैसे।

शब्द मूक कुछ हुऐ है ऐसे,
दिल में घडकन बजी हो जैसे।


प्रेम-रस यूँ छलके है ऐसे,

समुद्र -मंथन में अमृत हो जैसे।

दो प्रेमी मिलते है ऐसे,
तान छिडी हो गगन में जैसे ।

पूनम अग्रवाल .....

11 comments:

पशुपति शर्मा said...

शब्द मूक होने के बाद भी काफी कुछ कह गए हैं... वैसे आपने भी कुछ कहा और कुछ अधूरा ही छोड़ दिया... और इस अधूरेपन का अपना ही आनंद है...

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब लिखा आप ने, एक एक शव्द जेसे खुद बोलता हो.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

शब्द मूक कुछ हुऐ है ऐसे,
दिल में घडकन बजी हो जैसे।


--क्या बात है..सुन्दर भाव!! बढ़िया रचना, बधाई.

vijay kumar sappatti said...

aapki is kavita mein zindagi dhadkati hai ..

ek ek lafz apne aap mein ek kahanai hai

badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

प्रदीप said...

वैरी गुड.... जिन्दगी जिन्दा दिली का नाम है. जियो जिन्दगी जी भर के.... वक़्त का क्या भरोसा..... कहाँ कब क्या हो.... मेरी ओर से बधाई....

महेन्द्र मिश्र said...

सुन्दर भाव,बढ़िया रचना... बधाई.

Anonymous said...

sunder rachna, badhaii.

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut Ache bhav han,aapke maa beti ke riste ko padha bahut acha laga...

Anonymous said...

Pyar ka sangam, ati sunder Abhivyakti, Badhayee

Alpana Verma said...

bahut sundar likha hai aap ne--aap ki paintings bhi bahut achchee lagin

shyam gupta said...

बहुत सुन्दर--
अच्छी फ़िसलती हुई गज़ल है।