Sunday, August 31, 2008

कहर कोसी का "सजल जल"

नभ में जल है,
थल में जल है,
जल में जल है।

कैसी ये विडंबना ?
तरसे मानव जल को है।

भीगा तन है, भीगा मन है,
सूखे होंठ - गला रुंधा सा।
हर नयन मगर सजल है.....

पूनम अग्रवाल....

3 comments:

व्‍यंग्‍य-बाण said...

poonam ji,
prakriti ke kahar ko koi taal nahin sakta. kavita achchhi hai likhae rahiye. thanks.

अविनाश said...

really nive way of articulating your thought prcess and explaining nature feury

Anonymous said...

नदी और नारी का क्रंदन सुन पाना बड़ा मुश्किल होता है ..
आपने सुन्दर लिखा ..पर
कोसी का कहर नहीं वह तो क्रंदन था ..


परावाणी में कोसी पर मेरी कविता ज़रूर पढें ..


बिखरी कोसी , बिखरा बिहार
फिर भी मन में सपनें हज़ार