Sunday, July 6, 2008

आशा

बात ये बहुत पुरानी है,
एक बहन की ये कहानी है।
मांजी सब उनको कहते थे,
प्रेमाश्रु सदा उनके बहते थे।
कमर थी उनकी झुकी हुई,
हिम्मत नही थी रुकी हुई।
पूरा दिन काम वो करती थी,
कभी आह नही भरती थी ।
सिर्फ़ काम और काम ही था,
थकने का तो नाम न था।
रसोई जब वो बनाती थी ,
भीनी सी सुगंध आती थी ।
चूल्हे पर खाना बनता था,
धुए की महक से रमता था।
कुछ अंगारे निकालती हर रोज,
पकाती थी उस पर चाय कुछ सोच।
शायद भाई कहीं से आ जाए,
तुंरत पेश करुँगी चाय।
थकान भाई की उतर जायेगी,
गले में चाय ज्यूँ फिसल जायेगी।
नही था वो प्याला चाय का ,
वो तो थी एक आशा।
बुझी सी आँखों में झूलती ,
कभी आशा कभी निराशा।
बहन के प्यार की न कभी,
कोई बता सका परिभाषा.....

पूनम अग्रवाल .....




5 comments:

Anonymous said...

It enables us to express our feelings and opinions.

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Misha Agrawal said...

This comment is for those who have not understood the true storyline behind the poem : the poem is about poetess's grandmother-in-law, whose daily use to make an extra cup of tea, just in hope that her brother will come one day and have that tea!!
Her entire feeling is expressed in beautiful words by PoonamJainAgrawal :)

rajesh singh kshatri said...

पूनम जी,बहुत मर्मस्‍पर्शी रचना है

Anonymous said...

eak beti ne apni maa ki zindigi ki bhavnao ko bade he marmick evam darshnik roop me pesh kiya hai.
Keep it up!

Madhu Jain